महाराष्ट्र के 12 जिलों में गहराया पानी का संकट । विदर्भ,लाटूर मराठवाड़ा के लगभग 227 गांव हैं सूखे की चपेट में । फसल हो गई चोपट। हालात से तंग आकर किसानों मे बढ़ रही है आत्म-हत्या की प्रवृति । नहाना तो दूर पीने के लिये पानी के भी हैं अब लाले ।
मराठवाड़ा बांध में पानी का स्तर 4 प्रतिशत रह गया है और अमरावती के 100 जल स्त्रोतों की हालत भी खास अच्च्छी नहीं है । दिन बा दिन पानी का स्तर गिरता जा रहा है । शहरों मे पानी लंबी लाइन में लगाकर राशन के माफिक मिल रहा है । गांव में तो मीलों का सफर तय करने पर भी पानी मिलना नसीब है ।
केंद्र और राज्य सरकार दवारा माकूल इंतजामात के बावजूद हालात बदस्तूर हैं । चल रही है पानी की ढुलाई ट्रेन और टेंकरों से । तमाम इंतजामात के बावजूद भी पिछले तीन महीनों में सूखे के कारण आत्म-हत्या करने वाले किसानों की संख्या 57 पार गई है । गये साल भी सूखा पडा था और आत्म-हत्या करने वालों की संख्या 725 थी ।
हालात बदस्तूर होने पर भी फुरसत नहीं है किसी को दलित राजनीति से । किसी को अंबेडकर का अवतार तो किसी को भगत सिंह के खिताब से नवाजा जा रहा हैं और ना ही किसी ने अपना साहित्य अवार्ड लोटाया । फिर जगत गुरु शंकराचार्य स्वरुपानंद भी क्यों चूकें घर्म की आड़ में राजनीति से । उन्होंने तो सूखे को सांई बाबा की पूजा से जोड़ दिया । विचारणीय है महाराष्ट्र में सूखे और भूखमरी के कारण बढ़़ती किसानों में आत्म-हत्या की प्रवृति और राजनीति का गिरता स्तर .....