पत्रकार सुरक्षा अधिनियम की मांग ने फिर पकड़ा जोर । श्रमजीवी पत्रकार संगठनों द्वारा हो रहा है जगह-जगह रायशुमारियों और परिचर्चाओं का आयोजन और दिये जा रहे हैं जिला और राज्य स्तर के अधिकारियों को ज्ञापन । गये साल 7 दिसंबर को नेश्नल युनियन आफ जर्नलिस्ट ने भी अपने सहयोगी संगठनों के से किया था जंतर मंतर में प्रदर्शन और हाल ही में की राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात।
भारत में पत्रकारो को समाज के चैथे स्तंभ के रुप में जाना जाता है आज खौफजदा हैं और मांग कर रहे हैं पत्रकार सुरक्षा अधिनियम की । डयूटी के दौरान पत्रकारों पे हमले अब हो गये हैं आम । हाल ही में प्राप्त एक सूचना के अनूसार पिछले 10 सालों में डयूटी के दौरान मारे गये पत्रकारों की संख्या 100 से भी अधिक है । यू.पी. हो या मध्य प्रदेश और या फिर हो महाराष्ट्रा देश का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां पत्रकार तो पत्रकार आम आदमी भी है सुरक्षित । लाठी की बिसात पे टिकी है सियासत के खेल ही कुछ निराले हैं । लखनउ में पत्रकार जगेंद्र सिंह जघन्य हत्याकांड को ही लीजिये दिन दहाड़े एक पत्रकार को पेट्रोल छिड़क के जिन्दा जला दिया जाता है और प्रशासन मौन खडा तमाशा देखता है । परिवार वालों का मानना है कि इससे पहले भी मृतक पत्रकार पर प्राण घातक हमला और उन्हें झूठे केस में फसाने की साजिश रची थी ।
राजधानी दिल्ली और फरिदाबाद भी अब कहां हैं पीछे । पिछले दिनों फरीदाबाद में हुई पत्रकार पूजा तिवारी की मौत हत्या थी या आत्म-हत्या खुलासा अभी बाकी है । वह एक अपार्टमेंट के पांचवे माले से गिरकर मृतक पाई गई । जांच अभी जारी है । सी.पी.जे. के सालाना इमप्युनिटी इंडेक्स के अनुसार भारत दुनिया का तेरहवा एैसा देश है जहां पत्रकारों की खुले आम हत्या होती है और हत्यारे बेखौफ खुले आम घूमते हैं । पड़ोसी देश पाकिस्तान में पत्रकार सुरक्षा अधिनियम 2014 में बना और 2015 में लागू हुआ ।
सदियों से चल रहे सियासत और खुलासो के इस खेल में आवश्यक्ता है आचारसंहिता के दायरे में प्रकाशन और प्रसारण से पूर्व तथ्यों के मुलयाकन और विषलेशण की । साथ ही में माकूल सुरक्षा इंतजामात की । क्या फरक पड़ता है पत्रकार किस प्रजाति का है ......