69 साल पहले खेली गई विभाजन की राजनीति का अंजाम यह देश आज तक भुगत रहा है । सरहद के आर और पार के इस खेल से भले ही चंद लोगों को फायदा हुआ है लेकिन इसका खमियाजा भुगत रहे हैं सैन्य वा अर्ध सैनिक बल । सैनिकों की कुर्बानी को शहादत का जामा पहनाकर कुछ समय के लिये राजनैतिक माहौल गर्म। फिर वही खामोशी ।
जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर भारत के सीमांत इलाके जम्मू-कश्मीर की आय दिन आतंकी, कभी एक तो कभी दो तो कभी पूरी की पूरी बटालियन साफ । हाल ही में उरी में पूरा का पूरा आर्मी केंप ही जला डाला । 18 जवान शहीद । हमले अब भी जारी । कभी बारामूला तो कभी पंपोर तो कभी रजोरी । सीमा के उस पार से अभी भी कार्यवाही जारी है ।
आये दिन होते आतंकी हमले बिना स्थानिय समर्थन के । समझ से परे है । सार्वजनिक प्रदर्शनों मे पाकिस्तान का झंडा फहराना । समर्थन मे नारे लगाना । गाली वा पत्थर मारकर सैन्य और अर्ध सैन्य बलों को उकसाना । लोकल बाशिंदों के समर्थन के बिना समझ से परे है । प्रशासन की शय की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता ।
बजाय मौजूदा शासन पर कड़ी कार्यवाही का दबाव बनाने के हमारा विपक्ष जिन में कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं हुरियत से रायशुमारी की पैरवी करता है । आने वाले समय में देश को चलाने के लिये हुरियत से सलाह की पेशकश की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता ।
हालांकि प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने सेना को परिस्थिति अनुसार निर्णय लेने की छूट दी है और सेना ने कार्यवाही भी की है । समझौते की राजनीति के इस खेल के बीच आंसू भरी दो आंखें बस हसरत यही कि कब थमेगा कुर्बानी का यह मंजर । वाह री राजनीति तेरा भी जवाब नहीं....