पिछले एक दशक में शिक्षा का स्तर भले ही न उठा हो नौकरी का स्तर जरुर गिरा गया है । याने कि आज देश में अधिकांश शिक्षित है अंडर ऐंप्लोयेड । नौकरी की कमी दूसरा छोटी ही सही सरकारी नौकरी पाने की होड़ बन सकती है अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिकों के लिये आने वाले समय में चुनौती ।
अब वो पुलिस के सिपाही की नौकरी हो या सरकारी दफतर में बाबू और खलासी की भरती । चाहें आप स्नातकोत्तर हों या इंजीनियरिंग ग्रेजुवेट स्नातक को भूल जाइये हजूर तमन्ना बस यही मिल जाये बस एक सरकारी नौकरी चाहें वो छोटी ही सही । जब कतार में ओवरक्वालीफाइड का हजूम है तो दसवीं बाहरवीं पास जो असली हकदार हैं को बेहाल होना ही हुआ ।
हाल ही में हुई दिल्ली पुलिस के कांझनवाला ट्रेनिंग सेंटर की पासिंग आउट परेड में 12 स्नातकोत्तर, 5बी.टेक.123स्नातक और 121 बारहवीं पास थे । यह पासिंग आउट परेड दरोगा या हेड कांस्टेबल की नहीं, सिपाही,डाइवर,जेल वार्डन और मेट्रन की थी ।
पिछले दिनों यू.पी. के एक सरकारी विभाग मे हुई चपरासी की भरती जिसमें ग्रेजुवेट और पोस्ट ग्रेजुवेट भी शामिल हैं सुर्खियों मे रही । यह बात और है कि कोर्ट ने नियुक्ति पर रोक लगा दी है और मामला कोर्ट में विचाराधीन है । एैसे कई मामले हैं जिनका खुलासा समय के साथ कहीं न कहीं हो ही जाता है ।
यदि सरकारी आंकड़ों को पर गौर फरमाया जाये तो निश्चित ही रोजगार के सतर और नौकरी के नये आयाम खुले हैं । और कहीं न कहीं बेरोजगारी भी कम हुई है । रही बात दूरगामी परिणामों की खुलासा तो समय के साथ हो ही जायेगा।विचारणीय है तो बस सामान्य नौकरी में ओवरक्वालीफाइड मेनपावर की भरती। कहीं न कहीं जरुरी है एक सुलझी हुई नीति........