ग्लोबलाइजेशन के इस मशीनी युग में नजर आ जायेगा आज भी कोलकता की व्यस्त सड़कों पर हथ रिक्शा । मात्र 100/200 की ध्याड़ी के लिये 12 धंटे हाथों से रिक्शा खींचना वो भी नंगे पाँव । भारत में हथ रिक्शा का प्रचलन 1880 में शिमला ओैर 1914 में कोलकता में लोकल ट्राँसपोर्ट के रुप मे हुआ । चालक को आम भाषा में रिक्की बाबा के नाम से जाना जाता है ।
कवर ऐूशिया प्र्रेस की कवर स्टोरी और अन्य सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कोलकता में लगभग 20000 हथ रिक्शा चालक हैं जिन्में से मात्र 6000 के पास वेलिड लाइसेंस हैं । पीढ़ियों से चले आ रहे इस धंधे में आमदनी कम सोषण ज्यादा है । एक स्टेज में आदमी शरीर से भी जाता हैं । ठंड हो गर्मी हो या फिर बरसात इन हथ रिक्शा चालकों का तो रिक्शा ही आश्यिाना है । ज्यादातर की रात ही रिक्शा तले बीतती है ।
कई सियासते आई और चली गई मगर हथ रिक्शा की आड़ में मानवीय शोषण अब भी बरकरार है । बच्चों,महिलाआके और जाति के अधार पर यहाँ तक माइनरिटी के लिये भी समय≤ पर विस्थापन और कल्याण की योजनायें बनती रही हैं । इन पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो । हाँ समय बे समय पर राज्य सरकार द्वारा बेन के प्रयास जरुर होते रहे हैं ।
इंगलेड और जापान जैसे देशों में हथ रिक्शा पूरी तरह पगतिबंधित हैं । यहाँ तक बुल फाइटिंग के खिलाफ भी अवाज उठाई जा रही है । विचारणीय है तो बस ग्लोबलाइजेशन के इस युग में हथ रिक्शा के माध्यम से रिक्की बाबा का होता शोषण...