पैसे की तर्ज पर होती है कश्मीर में सैन्य वा अर्ध-सैन्य बलों के जवानों पर पत्थर बाजी । सुना है इन पत्थर बाजों को इनके आकाओं से पत्थर फैकने की तनखाह मिलती है । इतना ही नहीं पैसे की तर्ज पर पाकिस्तान का झंडा लहराया वा नारे लगाये जाते हैं । क्या फरक पड़ता है कि वह धार्मिक स्थल हो या कालेज परिसर और या फिर व्यस्त चैराहा ।
हाल ही में एक लोकल क्रिकेट मैच में खिलाड़ी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की युनिफार्म पहनकर मैदान में उतरे । यह खिलाड़ी पाकिस्तानी टीम के नहीं कश्मीर के लोकल बाशिंदे थे । मैच का आयोजन अलगााववादियों ने किया था । यह मैच प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की 2मई की कश्मीर यात्रा के विरोध में था और इसे इडताल नाम दिया गया । गौर फरमाने की बात यह है कि नरेंद्र भाई वहाँ चिंनानी नासरी सुरंग का उदघाटन करने गये थे ।
क्रिकेट मैच गंडरबल के वायिल मैदान में हुआ था । मैच की शुरुवात में खिलाड़ियों द्वारा पाकिस्तान का राष्ट्रगान गाये जाने से सुर्खियों में है । राष्ट्रगाान से पहले लाउडस्पीकर पर कमेंट्रटर द्वारा घोषणा की गई । हालांकि मैदान स्थाननीय थाने के करीब था ।खली तो बस वहाँ के हुक्मरानों की अजीब खामोशी ।
मीडिया द्वारा की गई पड़ताल के अनुसार पत्थर फैकने की 5000-6000 रुप्ये तनख्वाह मिलती है । कभी-कभी कपड़े और पहनने के जूते भी मिल जाते हैं । हिजबल के कमांडर बुराहन वानी की मौत के विरोध में हुई पत्थर बाजी से घायलों की संख्या 3000 थी । जिस आधे अर्ध सैनिक बलों के जवान थे ।
जवानों पर पत्थर बाजी वा भारत के विरोध और पाकिस्तान के समर्थन में नारे बाजी तो रोज का फसाना है । विचारणीय है तो बस अलगाव की आग में झुलसता कश्मीर और वहाँ के हुक्मरानों में अजीब सी खामोशी । चंद फिरकापरस्त बुद्धिजीवी इसे अभिव्यक्ति की आजादी मानते हैं .....