केजरीवाल को शिकायत है ई.वी.एम. याने कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से । मानना है कि ई.वी.एम. में टेंपरिंग की सभावना बनी रहती है । निष्पक्ष मतदान बेलेट पेपर से ही संभव । ठीक इसी प्रकार का संदेह बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा मायावती ने भी लगाया था हाल ही में हुये यू.पी. में ष्विधान-सभा चुनावों की घोषणा के बाद ।
चुनाव में सूपड़ा साफ होने के बाद सार्वजनिक हुए उन के बयान के अनुसार यू.पी. के मतदाताओं ने तो बटन हाथी के निशान पर दबाया था लेकिन ई.वी.एम. में टेंपरिंग होने से बटन कमल के निशान पर दबा और जीत बी.जे.पी. की हुई । ई.वी.एम. को लेकर विभिन्न राजनैतिक घटकों की मिली-जुली प्रतिक्रियायें हैं ।
पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्य-मंत्री केप्टन अमरेंद्र सिंह ने ई.वी.एम. से छेड़-छाड़ की संभावना से इंकार किया है । उन का मानना है कि यदि ई.वी.एम. में छेड़-छाड़ की संभावना होती तो वो कभी मुख्य-मंत्री नहीं बन पाते । उनकी जगह कोई आकाली मुख्य-मंत्री होता । हालांकि उनका बयान कांग्रेस और उसके सहयोगी वाम-पंथी दलों से कुछ हटके है ।
पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में आने से इलेक्शन कमीशन ने मघ्य-प्रदेश के भिंड में ई.वी.एम. की पाहलेट जाँच की और मशीन द्वारा दिया गया आउट-पुट सही पाया गया । ई.वी.एम. पर रोक के लिये केजरीवाल द्वारा दिये गये तर्क भले ही राजनीति से प्रेरित हैं नजरंदाज नहीं किया जा सकता ।
इलेक्शन कमीशन का मानना है कि ई.वी.एम. नेटवर्क से कनेकट नहीं हो सकती ना ही इसे कंप्युटर से कनेक्ट नही किया जा सकता हेकिंग और टेंपरिंग होना असंभव है । फिर मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ई.वी.एम. को सील किया जाता है और उसपर पोलिंग एजेंट के साइन लिये जाते हैं ।
सील्ड ई.वी.एम. को मतगणना प्रकिया शुरु होने तक कड़ी सुरक्षा इंतेजामात के साथ स्ट्रांग रुम में रखा जाता है । मतगणना के समय ई.वी.एम. की सील मौजूद कांउंटिंग एजेंटों को दिखाया जाता है और यह एजेंट राजनीतिक दल याने कि प्रत्याशी के प्रतिनिधि होते हैं ।
ई.वी.एम. एक अभियांत्रिकी मशीन है और समय के साथ खराबी की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता ।विचारणीय है तो बस समय के साथ देश के नेताओं के बदलते तेवर । वैसे मामला सुप्रिम-कोर्ट में विचाराधीन है । बदलते परिवेश साथ जरुरी है प्रक्रिया माकूल इंतेजामात के साथ बदलाव.......