सिंघम ने किया देश को अलविदा । जी हाँ हम बात कर रहे हैं 1958 बैच के आई.पी.एस. आफिसर कंवर ल सिंह गिल की । गिल की देश में आतंकवाद और सांप्रदायिक दंगों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है । एक जमाना था पंजाब में आतंकवाद हो या अलिगढ़ के सांपगदायिक दंगे निपटने का बीडा़ गिल का ।
26 मई 2017 को दिल का दौरा पड़ने से गिल ने किया देश को अंतिम सलाम । वो 18 मई को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में इलाज के लिये भरती थे । दबंगाई और जिंदादिली उनकी रग-रग में बसी थी इसीलिये गिल को पंजाब का शेर कहा जाता है । अपने पुलिस केरियर के दौरान वह असम के आई.जी. वा पंजाब के डी.जी. रहे । उनके साहासिक कार्यों के लिये उन्हें 1989 में पदमश्री के खिताब से नवाजा गया ।
वह इंडियन हाकी फेडरेशन के अघ्यक्ष थे वा उन्होंने इंस्टिट्यूट आफ कनफलिक्ट मनेजमेंट की स्थापना की । वह अच्च्छे वक्ता के साथ अच्च्छे लेखक वा संपादक भी थे । उन्हें कंसलटेंट काउंटर टेरिजम के रुप में भी जाना जाता था । दबंगाई के साथ जिंदा-दिली उनके उनके नस-नस में भरी थी ।
गिल के जीवन पहलू को जानने के लिये पेश हैं दीनदयाल शोध संसथान में 15 अगस्त 2006 के दिन गिल द्वारा द्विराष्ट्रवादी मांसिक्ता और आतंकवाद पर दिये गये व्याख्यान के कुछ अंश । विभाजन का दौर था और गिल मात्र दस साल के थे उन के परिवार को पाकिस्तान में बलवाइयों ने खत्म कर दिया था बस वह और उन की बहन बचे थे । अंतिम घड़ी में उनकी माँ ने उनसे वचन लिया बिेटा दुशमनों का मुकाबला करना ।उनके हाथ नहीं आना । यदि एैसी घड़ी आती भी है तो पहले अपनी बहन को फिर खुद को मार देना मगर दुशमनों के हात नहीं आना ।
सांप्रदायिक दंगों का महौल था और निपटने की जिम्मेदारी गिल की । उन्होने दोनो ही पक्ष के महानुभावों को बुलाया और आपसी रजामंदी से सुलाह की पेशकश की । मगर दोनो ही पक्ष टस से मस नहीं । हारकर गिल ने दोनो पक्षों के मीानुभावों को बुलाया और एक घंटे की मोहलत दी साथ ही समझााया की यदि बलवा होगा तो पुलिस गोली चलायेगी और यह गोली आम आदमियों पर नहीं.... क्यों समझ गये ना...
दी गई मियाद से पहले ही दोनो पक्षों ने सुलह होने के साथ बलवा शांत हुआ । पंजाब में खालिस्तान की समस्या वा आतंकवाद से निपटने के स्टाइल के कारण वह लंबे अरसे तक मीडिया की सुर्खियों तथा राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बने रहे । उन्हें पंजाब का शेर भी कहा जाता है । रहा विवाद तो वह हर सेलीबगकटी के जीवन का हिस्सा होता है और समय के साथ खुद ही खत्म हो जाता है ।
आतंकवाद और अलगाव के पनपते परिवेश में विचारणीय है तो बस पंजाब में खालिस्तान को लेकर हुई समस्या से निपटने में गिल की भूमिका । जेहन में बस एक ही सवाल क्या मिलेगा देश को ऐसा सिंघम......