जैसलमेर शहर के बीचों-बीच 5 किलोमीटर के रेडियस में फैला जैसलमेर फोर्ट जिसे स्थाननीय भाषा में सोनार किले के नाम से जाना जाता है । मात्र किला ही नहीं लगभग लगभग 500 से भी अधिक घरों का समावेश है और आबादी 3000 है । किले के परिसर में राजा-रानी निवास ,होटल हिंदू वा जैन मंदिर और छोटे-छोटे बजार हैं । दिन के समय सोने की तरह चमकते जैसलमेर की शान इस किले का निर्माण 1156 में भाटी राजा जैशल ने किया था ।
शहर के मध्य गट़ीसर झील जिसमें अज बोटिंग का आनंद लिया जाता है के एक तरफ दो मंजिला झारोखों से युक्त टीलों का पोल कभी शहर में आने वाले साधु संतों वा यात्रियों के ठहरने का स्थान था । यह टीलों का पोल शहर से झील में प्रवेश करने का द्वारभी है । दूसरी तरफ हिंगला माता का मंदिर । हिंगला माता का बड़ा मंदिर पाकिस्तान में स्थित है ।
और इन सबके बीच शहर से 12 और 111 किलोमीटर स्थित लोगवाला बार्डर स्थित वार मेमोरियल म्युजियम भारत पाकिस्तान के बीच युध और सैनिकों की शाहदत की याद ताजा कर देते हैं । इन म्युजियम में पाकिस्तान के जब्त किये हुए टैंक और हथियारों का सामावेश है । 1972 की इस लड़ाई में पाकिस्तान को मुइ की खानी पड़ी थी ।
और इन सब के बीच जैसलमेर शहर से 120 किलोमीटर एल.ओ.सी. से स्तंभ की तरह खड़ा तनोत स्थित माता का मंदिर । खासियत यह है कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युध के दौरान पाकिस्तान द्वारा गिराये गये 3000 बंब बेअसर हो गये और मंदिर परिसर पर एक खरोच भी नहीं आई । मदिर में आज भी कुछ बंब नुमाइश के लिये रखे हैं ।
1965 की लडाई के बाद मंदिर की देख-रेख वा व्यवस्था कील जिम्मेदारी अब बी.एस.एफ. के पास हैॅ और यहाँ बी.एस.एफ.की चौकी भी है । 1971 की लड़ाई में माता की कृपा से बी.एस.एफ. और पंजाब रेजिमेंट ने माँ की कृपा से पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी और लोंगवाला को पाकिस्तानी टेंकों का कब्रिस्तान बना दिया ।
लोंगवाला में हुई जीत के बाद मंदिर परिसर में विजय स्तंभ का निर्माण किया गया और हर साल 16 दिसंबर सैनिकों की याद में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है । जैसलमेर से जुड़े युद्ध के इतिहास के बीच यादें ताजा हो जाती हैं भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग की । हमारे रणबाँकुरे जवानों के शाहदत की ।
दिलचस्प बात यह है कि 1971 की लड़ाई में लगभग 90000 पाकिस्तानी सैनिकों ने सरंडर किया जिन्में अफसर भी शामिल थे । पेश है एक झलक....