संसद के पटल पर वित्त मंत्री अरूण जेतली द्वारा पेश किये गये सालाना बजट 2018-19 का केंद्र बिंदू है मेक इन इंडिया । कस्टम डयूटी में हुई वृद्धि वा 10 प्रतिशत समाज कल्याण भार के चलते इंपोर्टेड समान विशेषकर मोबाइल,टी.वी.,लेपटाप आदि के दामों में होगी अप्रत्याशित वृद्धि ।
यदि कृषि वा ग्रामीण विकास के नजरिये से देखा जाये तो इस बजट में कृषि उत्पाद के प्रसार के लिये 500 करोड़ तथा मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर 2000 करोड़ रूप्ये का प्रवधान है । रही बात ऋण की तो यह 8.5 लाख करोड़ से बढकर 11 लाख करोड़ रूप्ये हो गया है ।
जहाँ लगजरी वा स्टाइल से जीने वाले लोगों की अब जेब होगी ढ़ीली वहीं कृषि ऋण के बजट में बढ़त के चलते क्या थम जायेगी लाटूर वा अन्य इलाकों में किसानों में बढ़ती आत्म-हत्या की प्रवृति ।
रहा सवाल स्वस्थ्य का तो इस बजट में देश के 50 करोड़ परिवारों के लिये प्रति परिवार 5 लाख रूप्ये का प्रावधान है । आयकर के साथ कोई खास छेड़-छाड़ नहीं हुई है । देश की तीन सार्वजनिक बीमा कंपनी नेशनल युनाइटेड वा ओरियंटल का होगा विलय बनेगी एक कंपनी ।
अब साधारण बीमा के क्षेत्र में अब रहेंगी दो कंपनियां । सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनी न्यु इंडिया एश्युरेंस कंपनी का साधारण बीमा मार्किट में 60 प्रतिशत शेयर है । 2018-19 का टारगेट 80000 करोड़ रूप्ये है । सार्वजनिक बीमा कंपनियों के लिये अब हो गई कठिन डगर पनघट की ।
बजट को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियायें हैं । सत्ता पक्ष के अनुसार बजट सरकार की नीतियों की रूपरेखा है पलट में विपक्ष याने कि कांग्रेस वा उसके सहयोगी वामपंथी दल इसे बेबुनियाद मात्र एक जुमला मानते हैं । समझ से परे इस बजट के परिणाम देरी से ही सही दूरगामी रहेंगे.....