देश में सक्रिय हैं राजनैतिक सरर्गमियाँ। भा.ज.प. और कांग्रेस सहित कई द्दोटे-बड़े राजनैतिक दल मैदान में उतरे। कहीं रैली तो कहीं मिटिंग,हर कोने में चमकते द्दोटे-बड़े होर्डिंग्स,कभी तिरंगा तो कहीं भगवा और कहीं हरा। हर ओर चुनावी आलम।कोई किसी के मुह में कालिख पोतता दिखाई देता है तो कोई सोलह सवाल और कोई न्यौता देता है साथ बैठकर खाने का मात्र बीस हजार में। आरोपों-प्रत्यारोपों के साथ जोर-शोर से लो शुरू हो गई सत्ता के महाभोज की तैयारी।
प्रधान मंत्री पद की दावेदारी में जहाँ भा.ज.प. के गलियारे से एक नाम उभर कर आया गुजरात के मुख्य मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का वहीं कांग्रेसी खेमे में सुगबुआहट है युवा नेता राहुल गांधी की।यूँ तो इस दौड़ में नितिश और मायावती सहित अनेक दिग्गज शामिल हैं मगर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।वो हमेशा अपनी राजनीतिक उठापटक एवं विवादस्पद बयानबाजी के कारण सुर्खियों में बने रहते हैं।
जहां तक मोदी का सवाल है उनका नहीं लोगों का यह मानना है कि उन्होने यह मुकाम अपनी कर्मठता एवं लंबे समय के संघर्ष से हासिल किया है।उनके होसले और सही सोंच की मिसाल है गुजरात। आज गुजरात आर्थिेक-औध्योगिक विकास में नंबर वन है।और जहाँ तक राहुल का सवाल है उन्हें राजनीति विरासत में मिली है। उनके पास है युवा पीढी का समर्थन। उनके समर्थकों का यह मानना है कि वो कांग्रेस की नीतियां ही हैं जिनसे देष का विकास हुआ है।जिसके गवाह हम सब हैं।
अब देखना यह है कि केजरीवाल की नीति क्या रंग लाती है। यह तो तय है कि वोट तो कटेंगे ही और इसका खामियाजा कांग्रेस और भा.ज.प. दोनो को ही भुगतना पड़ सकता है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा। सरकार भा.ज.प. की बने या कांग्रेस की करणधार तो केजरीवाल ही होंगे। देश का भावी सिपहसलार कौन होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा...