सत्ता के नशे में मानसिक संतुलन खोकर बढ़ते अपराध आज समाज के लिये चुनौती बन गये हैं । क्या फरक पड़ता है कि इन अपराधों को अंजाम देने वाला एक नेता है अभिनेता है या फिर चैराहे पर खड़ा पुलिस का एक सिपाही ।
हाल ही में लखनउ का विवेक तिवारी केस मीडिया की सुर्खियों में है । ऐपल के ऐरिया सेल्स मेनेजर विवेक तिवारी अपनी सहयोगी सना के साथ आई फोन के लाइव इवेंट से वापिस लौट रहे थे । गोमती नगर के पास बाइक पर सवार दो पुलिस कर्मियों से हुई नोक-झोंक के चलते उनमें से एक सिपाही द्वारा सर्विस रिवालवर से गोली दागने से उनकी मौत हुई ।
बचाव में पुलिस कर्मियों का कहना है कि गत शनिवार तड़के एक कार संदिग्ध अवस्था में खड़ी थी । पास पहुँच कर जवाब तलब करने पर चालक ने गाड़ी स्टार्ट कर दी और उन्हें कुचलने की कोशिश की । स्वयं के बचाव के लिये उन्हें गोली चलानी पड़ी और चालक की मौत हुई ।
फिलहाल दोनो सिपाही हिरासत में हैं और मामले की जाँच चल रही है । यू.पी. पुलिस के डी.जी.पी. ओ.पी. सिंह ने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है । मामले की जाँच के आदेश हुए हैं । मृतक के परिवार वालों ने सी.बी.आई. से जाँच कराये जाने कि माँग की ।
जहाँ सोशल मीडिया वा सामाजिक संगठनों के माघ्यम से जहाँ पीड़ित परिवार के लिये मुआवजे की माँग हो रही है वहीं मुख्य अरोपी सिपाही प्रशांत चैधरी के सहयोगी पुलिसकर्मी उनके बचाव में सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं ।
फिलहाल तहकीकात जारी है और सत्य का खुलासा भी समय के साथ हो ही जायेगा । मामले की संजदगी मध्य नजर विचारणीय है तो संवैधानिक पद आसीनों की सोशल मीडिया पर हो रही बयानबाजी.....