चोसर की बिसात पर टिकी है दिल्ली की राजनीति। आगामी लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों का भविष्ष्य पासों पर टिका है। कुल मिलाकर यह सब पासों का खेल है। दिल्ली का राजनैतिक समीकरण किस छोर गुलाटी मारे कहना असंभव है । हाल ही में हुये विधान सभा चुनाव खुद में मिसाल है। यहाँ एक पल में मिली-जुली सरकार बनती है और एक झटके में पलट भी जाती है । शुरू हो जाती है नये दौर की तैयारी।फिलहाल यहाँ का समीकरण कुछ उल्झा सा है। टक्कर कांटे की और संघर्ष त्रिकोणिया है। कोई धरती की कसम खाता है तो कोई अपनी वषों की उप्लब्धियों की दुहाई देता है और किसी को खुद में अच्छाईयाँ और दूसरों में बुराइयाँ दिख्ती हैं। अपने अपने पासे अपने अपने दाव।
यदि देखा जाये तो पिछले 10 सालों में दिल्ली काफी बदली है चैड़ी सड़कें, मेट्रो,फ्लाइ ओवर,बेहतर चिकित्सा और ना जाने क्या क्या...। इसमें दो राय नहीं कि दिल्ली का विकास हुआ है मगर कमर तोड़ मंहगाई और लचर प्रशासनिक व्यवस्था के चलते असुरक्षा की भावना को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता । लगभग 1.23 करोड़ से भी अधिक मतदाता एवं 7 लोकसभा क्षेत्र वाली दिल्ली की हर लोकसभा सीट पर बी.जे.पी., कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणा संघर्ष है । डा. हर्ष वर्धन(बी.जे.पी.) ,संदीप दिक्षित (कांग्रेस) एवं महाबल मिश्रा (कांग्रेस) सहित अनेक दिग्गज मैदान में हैं। राजमोहन गांधी ( आम आदमी पार्टी) व मिनाक्षी लेखी (बी.जे.पी.) जैसे कुछ नये चेहरे भी मैदान में डटे हैं ।
आम आदमी पार्टी की मौजूदगी का खामयाजा कांग्रेस और बी.जे.पी. दोनो को ही भुगतना पड़़ सकता है । वोट तो कटेंगे ही किसी के कम किसी के ज्यादा। कौन सियासत के साथ होगा और कौन बाहर यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा...