प्रचार-प्रसार और तमाम सोशल मीडिया के चलते अब तक हुए मतदान की दर औसतन 60 से 62 प्रतिशत होना विचारणिय है। लगता है कहीं न कहीं आम मतदाता के चूनाव के प्रति रुझान में कमी आई है। या फिर उसे लगने लगा है कि मौजूदा हालात के चलते बदलाव नामुमकिन है। चाहें कुछ भी हो यह सिसटम बदलने वाला नहीं। सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा।उलझी सोंच और उलझे समीकरण के चलते क्या देश को स्थिर सरकार मिलेगी या फिर वही तोड़-जोड़,सांसदों की खरीद-फरोख्त और उठा-पटक से बनी एक मिली-जुली सरकार। शुरू में लगाव फिर टकराव और मामला ठप्प। फिर से नये विकल्प की तलाश। आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा। यह विचारणिय है और इसपर विचार होना ही चाहिए।
सरकार किसी की भी बने। कांगे्रस की या फिर भा.ज.प. की। अरविंद केजरीवाल की भूमिका तो तय रही ।करणधार वही होंगे। सरकार के गठन के बाद उनका नया रोड शो क्या होगा यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। फिलहाल घड़ी आ गई है फैसले की और बाजी है आम आदमी के हाथ में। तय उसे करना है स्थिर सरकार या फिर मिली जुली। मतदान चल रहे हैं। वोट डालते समय जरुरत है सही सोंच नई दिशा की ......