मतदान के अंतिम चरण में भी जारी है आरोपों और प्रत्यारोपों का सिलसिला । नये और पुराने मुदृों के चलते मची हुई है राजनीतिक गलियारों में हलचल । सुर्खियों में हैं भा.ज.प. के प्रधान मंत्री पद के दावेदार श्री नरेन्द्र मोदी और अपनी विवादस्पद बयानबाजी के सुर्खियों में रहे कांग्रेस के अग्रज नेता श्री दिगविजय सिंह साथ ही हरियाना के भु आवंटन विवाद के चलते लपेटे में हैं गांधी परिवार के करीबी श्री राबर्ट वाडरा । अलवर में महंत चांदनाथ की प्रचार सभा में बाबा रामदेव ने तो हद ही कर दी वो भूल गये कि माइक्रोफोनस आन हैं और रिकाडिंग चल रही है।
क्या हर्ज है मोदी अपनी पत्नी के साथ हो या न हो और दिगविजय सिेह की एक महिला पत्रकार से हो करीबी संबंध। फरक पड़ता है तो आम आदमी पार्टी के श्री अरविंद केजरीवाल का चुनाव प्रचार के दौरान हर जगह एक ही अंदाज में थप्पड़ खाना और स्याही का छिड़काव । वोटों की राजनीति है भइया और फिर टी.आर.पी. भी तो बढानी है । जहां सवाल रहा चुनाव प्रचार में 10000 करोड रूप्ये खर्चे और साधनों के दुरपयेग का । कुछ नया नहीं है । यूँ ही चलता आ रहा है यूँ ही चलता रहेगा आखिर सत्ता का महाभोज जो है । राजनीति का तो यही महामंत्र है पावर$पैसा=सत्ता । कहीं थोड़़ा तो कहीं ज्यादा ।
अब देखना यह है कि मौजूदा सर्गर्मियों के चलते राजनीति का यह ऊंट किस और करवट लेगा । कौन बनेगा सिकंदर और कौन होगा खाकसार यह तो आने वाला समय ही बतायेगा....