एक अरसे बाद भारत-चीन को आपसी संबंधों पर पुनः विचार करने की अवश्यक्ता हसूस हुई । यह बात और है कि पहल भारत ने की । श्रेय जाता है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को । चीन के राष्ट्रपति जिंपिंग के भारत आगमन के साथ ही सिलसिला शुरू हुआ आपसी समझौतों का ।
जहां तक अमरनाथ यात्रा का सवाल है,चीन दूसरे रास्ते के विकल के लिए राजी और बदले में जमायेगा भारत में अपना कारोबार मगर जब बात आती है एल.ओ.सी. याने कि लाइन आफ कंट्रोल की छा जाती है वही अंजानी खामोशी और लग बार्डर पर है चीनी सैनिकों का जमवाड़ा । समझौते तो पंडित जवाहरलाल नेहरू और जनरल माउ से तुंग की मध्यस्थता में भी हुये थे और अंजाम 1962 का चाइना वार ।
चीन एक उभरती हुई आर्थिक महा शक्ति है । अपने माल की खपत के लिए उसे तलाश है भारत जैसी मंडियों की जबकि भारत को चाहिए शांति । क्वालिटी के आधार पर चीन का माल औसतन 50 से 75 फीसदी सस्ता होता है । ऐसे में सही डयुटी स्ट्रक्चर के आभाव में तो भारतीय उदयोगों की तो निकल पड़ी ।
इसमें दो राय नहीं कि मोदी और जिंगपिंग सुलझे हुए राष्ट्र नायक हैं मगर क्या एल.ओ.सी. के मामले में ,यह दोनो शक्तियां एक होंगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा............