87 विधान सभा सीटों वाले जम्मू-कश्मीर में उम्मीदवारों की डोर है 69.3 लाख मतदाताओं के हाथों में । सियासत और अलगाव की बिसात पर टिकी यहां की राजनीति और इसके तेवर कुछ ज्यादा ही तीखे हैं । मसले हैं बिजली के दामों में तिगुनी बढत, कुप्रशासन और आतंकवाद । रही सही कसर पूरी कर दी है प्राकृतिक आपदा यानि कि हाल में आई बाढ से निपटने में मौजूदा सरकार की भूमिका ।
आगामी चुनावों में, कांग्रेस के पल्ला झाड़ने के बाद अब्दुल्ला सरकार याने कि जम्मु-कश्मीर नेशनल कांफेंस को अकेले ही झेलना पड़ेगा पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भा.ज.प. को ।
पिछले चुनावों में जम्मु-कश्मीर नेशनल कांफेंस और उसकी सहयोगी कांग्रेस को 45 सीटें (28 +17),पीपल्स डेमोक्रेटिक पाटी को 21 और भा.ज.प. को 11 सीटें मिली थी । ऐसे में भा.ज.प. के लिए चक्रव्यहु को तोड़ना नामुमकिन नहीं तो आसान भी नहीं है । मौजूदा हालातों में केंद्र सरकार की भूमिका और मोदी मंत्र क्या रंग लायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा ।
फिलहाल मौका है मतदान का और आवश्यक्ता है एक सही सोंच और नजरिये की ।