इस बार के बजट से जहां उदयोगपतियों को राहत मिली है वहीं मध्यम वर्ग याने कि आम आदमी को करना पड़ सकता है कमर तोड़ मंहगाई का सामना । सेवा कर बढकर 12 से 14 % और कारपोरेट टेक्स 30 से घटकर 25 % रह गया है । सेवा कर में बढत के चलते अब सार्वजनिक सेवायें जिनमें रेलवे,संचार,बिजली और पानी भी शामिल हैं अब होंगी मेहंगी जिसका कहीं न कहीं असर बाजार भाव पड़ेगा और बेमौत मारा जायेगा आम आदमी ।
ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों को चिकित्सा पे 30000 की छूट और कुछ एक बचत पर आयकर की छूट लोलीपोप नही तो और क्या है । सबका साथ सबका विकास का नारा लगाने वाली यह मोदी सरकार क्यों भूल जाती है कि सरकारी और सार्वजनिक उपक्रम मे काम करने वाले मुलाजिमों को छोड़कर महानगरों में रहने वाले अधिकांश का वेतन न्यूनतम मजदूरी से आधे से भी कम है । क्या फरक पड़ता है कि वह कुशल या अकुशल ।चाहें वो पत्रकारिता हो या शिक्षा और या फिर हो कारखाना काम करने वालों का औसतन मासिक वेतन 3500 से 6000 रुपये । कागजी लेखा-जोखा कौन बड़ी बात है जेब में दाम है तो सत्यापन कौन बड़ी बात है । सरकारी आंकड़ों मे प्रति व्यक्ति आय मे हर साल बढत दिखाई जाती है ।
मंहगाई की गाज सबसे ज्यादा इसी तबके पर गिरती है । मजेदार बात यह है कि मोटी तनखा और अंतरिम राहत के बावजूद बैंक,रेलवे और अन्य विभागों के कर्मचारी समय बेसमय अपनी मांगों को लेकर हड़़ताल पर बैठ जाते हैं मगर यह महंगाई की मार से जूझते हुए अपने काम पे जुटा रहता है ।
केंद्र में मोदी और दिल्ली में केजरी सरकार इनको सकून की जिंदगी दे पायेंगी या नहीं या फिर रहेगा मात्र कोरा अश्वासन यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा....