कल तक आम आदमी पार्टी के मसीहा कहलाये जाने वाले प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को उनकी खुद की ही पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बागी करार किया है । दबी जबान लगाया जा रहा है विरोधियों के साथ मिलकर साजिश का अभियोग । उनकी पी.ए.सी. से बरखास्तगी को लेकर कार्यकर्ताओं में अच्छी खासी तनातनी है । दोनो ही कभी केजरीवाल के करीबी थे । एक कानूनी सलाहकार तो दूसरे की रही है चुनाव प्रचार में अहम भूमिका ।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की खासी पैठ है । गत विधान सभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा पक्ष में मतदान । विरोधियों के साथ मिलाकर एक अनोखा षडयंत्र जो पूर्ण बहुमत दिला दे । समझ से परे है । आंतरिक कलेश को निपटाने की बजाय संचालक महोदय का खांसी के इलाज के नाम पर पलायन एक सोची समझी रूपरेखा महसूस होती है । पहले विनोद कुमार बिन्नी फिर शाजिया इलमी और अब योगेन्द्र यादव व प्रशांत भूषण । इसे संरचनात्मक कमी माना जाय या फिर वन मेन शो का कमाल।
वैचारिक मतभेद तो आम है । निपटारे के लिए जरूरत है एक सही दिशा और सुलझी सोंच की । दिल पे लेने से होती है रुसवाही के साथ जगहसाही । आम आदमी पार्टी की आंतरिक कलह के चलते क्या होगा दिल्ली का राजनीतिक रुख यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा । फिलाहल दौर है राजनैतिक रंगमंच में हो रहे खुलासों का.....