आखिर क्यों है केजरीवाल का मीडिया के साथ छत्तिस का आंकड़ा । यह वही मीडिया है जो केजरीवाल का करीबी था और पल-पल का साक्षी है यूॅं कहिए कि अगर केजरीवाल शिखर पर हैं तो इसी मीडिया की बदौलत । हाल ही में जारी उनके राजकीय फरमान ने मीडिया और राजनीतिक तबके में सनसनी फैला दी । हालांकि मीडिया, नेशनल यूनियन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट एवं इंटरनेशनल जर्नलिस्ट फेडरेशन के प्रयासों से सुप्रिम कोर्ट ने फरमान पे रोक लगा दी है और केजरीवाल से जवाब-तलब की है ।
आखिर क्यो बदल गया है केजरीवाल का रूख मीडिया के प्रति ? कहीं यह पार्टी में चल रही हलचलों का खुलासा तो नहीं या फिर आंतरिक कलह के चलते बौखलाहट तो नहीं । दिल्ली के मुख्य मंत्री बनने के बाद भी नहीं आया है बदलाव केजरीवाल में । अगर वह किसी के लिए बोलें तो विचारों की स्वतंत्रता यदि दूसरे का पक्ष रखा जाये तो विरोधियों के साथ मिलकर उनकी पार्टी उनकी सरकार के खिलाफ साजिश । और खिलाफ लिखने वालों को जाना पड़ सकता है अंदर ।
क्यों भूल जाते हैं केजरीवाल कि वैचारिक स्वतंत्रता संवैधानिक है और मिडिया समाज का आइना है । जरूरत मिडिया पे रोक की नहीं पार्टी में अनुशासन की .....