सुप्रिम कोर्ट के स्टे के बाद अब ढ़ीले हैं केजरीवाल के तेवर । कुछ ज्यादा ही तीखे नहीं थे केजरीवाल के तेवर । बरदास्त के बाहर है उप-राज्यपाल की दखल-अंदाजी । भई बहुमत सरकार बनी है और हम हैं उसके मुख्य मंत्री । दूसरी तरफ उप-राज्यपाल जंग का दावा संविधान के दायरे में ही चलेगी कार्यवाही नहीं चलेगी मनमानी ।
दिल्ली देश की राजधानी है । केंद्र शासित होने से अधिकांश गतिविधियां पे केंद्र का नियंत्रण है और दिल्ली सरकार को सीमित दायरे में रहकर काम करना होगा । बिना आपसी रजामंदी के सियासत अधूरी । केंद्र के साथ तो पटरी बैठेगी ही आज नहीं तो कल ।
दूसरों से जवाब-तलब करने वाले केजरीवाल अब खुद ही सवालों के घेरे में हैं । वो और उनकी पार्टी मोदी सरकार से चाहिए एक साल का हिसाब तो अन्य राजनीतिक दल जिनमें कांग्रेस भी शामिल है मांग रही है 100 दिन का हिसाब ।
यदि देखा जाये तो पिछले दिनों केजरीवाल की छवि एक अच्च्छे मुख्य मंत्री के रूप में न सही अपनी मांगों को लेकर डटे हुए यूनियन लीडर से कुछ कम नहीं । पहले मुख्यमंत्री जिनकी सरकार के अधिकांश फैसले सड़क व नुक्कड़ सभाओं में लिए जाते हैं ।
प्रोपोगेंडा याने कि दिखावे की राजनीति से दिल्ली का जो भी हो आम आदमी का घनचक्कर बनना लगभग तय.....