पत्रकार तो पत्रकार अब आम आदमी भी नहीं है यू.पी. में सुरक्षित । लाठी की बिसात पे टिकी है यहां की सियासत । लखनउ में हुए पत्रकार जगेंद्र सिंह जघन्य हत्याकांड को ही लीजिये दिन दहाड़े एक पत्रकार को पेट्रोल छिड़क के जिन्दा जला दिया जाता है और प्रशासन मौन खडा तमाशा देखता है । दोष बस इतना अपने लेखों के जरिये प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अवैध भूमि अधिग्रहन जिसमें अवैध खनन भी शामिल है के खिलाफ आवाज उठाना ।
संदेह के तार एक पुलिस अधिकारी तथा स्थानिय मंत्री से जुडे़ हैं । परिवार वालों का मानना है कि इससे पहले भी मृतक पत्रकार पर प्राण घातक हमला और उन्हें झूठे केस में फसाने की साजिश रची थी । राजधानी दिल्ली भी है पीछे । यहां भी पुलिसकर्मियों पर हमले आम बात हैं । और इन सबके चलते आम आदमी की क्या बिसात । फतेहपुर में आम तोडने पे विवाद अंजाम जिंदा दहन । हमारी शर्तें नहीं तो हर हर गंगे । तमंचे पे डिसको और रेप के बाद मर्डर तो आम बात है ।
गौर फरमाने की बात यह है कि सी.पी.जे. के सालाना इमप्युनिटी इंडेक्स के अनुसार भारत विश्व का तेरहवा एैसा देश है जहां पत्रकारों की खुले आम हत्या होती है और हत्यारे बेखौफ खुले आम घूमते हैं । स्थाननीय पत्रकार संगठन एवं इंटरनेश्नल पत्रकार संघ स्थाननीय सरकार एवं मुख्य मंत्री पर निरंतर दबाव बनाये हैं । सियासत और खुलासो के खेल का आखिर क्या होगा अंजाम क्या आनेवाला समय ही तय करेगा । फिलहाल राजनीतिक सरगर्मियों का दौर है......