साइबर अपराध प्रकोष्ठ एवं सरकार के माकूल इंतजामात के बावजूद धड़ल्ले से चल रही है हेकिंग व क्लोनिंग । विचारनीय है ऐशोसियेट चेबर आफ कामर्स-महेंद्रा एसएसजी की अपने शोध के माध्यम से दी गई चेतावनी । 2015 के अंत तक भारत में साइबर क्राइम के आंकड़ा 500000 पार कर जायेगा । 2011 में दर्ज साइबर क्राइम की संख्या थी 13301 । याने कि पिछले पांच सालों में 105 फीसदी की बढ़त । नेशनल क्राइम रिकार्ड बयूरों के 2013 के आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्रा में दर्ज साइबर अपराधोंकी संख्या 681, आंध्रा में 635, कर्नाटक में 513, यू.पी. में 372, केरल में 341 और राजधानी दिल्ली में हैं 131 । 2012 से 45 फीसदी औसतन बढ़त । याने कि साइबर काइम के मामले में महाराष्ट्रा पहले नंबर पे आंध्रा दूसरे कर्नाटक तीसरे यू.पी. चैथे केरल पाँचवें और दिल्ली आता है छटे नंबर पे । बिहार, गुजरात, उडि़सा एवं अन्य राज्यों में यह संख्या औसतन है ।
हेकिंग और कलोनिंग के माध्यम से पासवर्ड क्रेक किया जाता है जिसे आम भाषा में पासवर्ड चुराना कहा जाता है । इस पासवर्ड का इस्तेमाल खुद के फायदे के लिए आन लाइन डाटा के साथ छेड़-छाड़ जिनमें आर्थिक लेन-देन भी शामिल है । हेक्स कालिंग भी इसी श्रेणी में आते हैं । ज्यादातर मामलों में हेकरस और क्रेकरस के तार कहीं न कहीं पीडि़त से जुड़े होते हैं । वो संबंधित बेंक से या किसी वेब डेवलोपर या आई.टी. डिपार्टमेंट जुड़ा होता है । जो मौका देखकर गेम खेल जाता है । इस जमात में कुछ आई.टी. प्रोफेशनल की टीम भी शामिल है खुराफात के चलते वेबसाइटस में छेड़-छाड़ जिनके लिए रुमर हैं और दूसरो के लिए मांसिक तनाव ।
साइबर क्राइम के शिकार होने पे जरूरत है संयम के साथ कानून और प्रशासन की मदद की । समय समय पे अपनी आनलाइन इंफरमेशन की जांच से हेकिंग से होने वाली जोखिम को रोका नही तो कम तो किया ही जा सकता है ।