पत्रकार जिन्हें समाज के चैथे स्तंभ के रुप में जाना जाता है आज खौफजदा हैं और मांग कर रहे हैं पत्रकार सुरक्षा अधिनियम की । डयूटी के दौरान पत्रकारों पे हमले अब हो गये हैं आम । हाल ही में प्राप्त एक सूचना के अनूसार पिछले 10 सालों में डयूटी के दौरान मारे गये पत्रकारों की संख्या 100 से भी अधिक है ।
अब वो यू.पी. हो या मध्य प्रदेश और या फिर हो महाराष्ट्रा देश का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां पत्रकार तो पत्रकार आम आदमी भी है सुरक्षित । लाठी की बिसात पे टिकी है सियासत के खेल ही कुछ निराले हैं । लखनउ में पत्रकार जगेंद्र सिंह जघन्य हत्याकांड को ही लीजिये दिन दहाड़े एक पत्रकार को पेट्रोल छिड़क के जिन्दा जला दिया जाता है और प्रशासन मौन खडा तमाशा देखता है । दोष बस इतना अपने लेखों के जरिये प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अवैध भूमि अधिग्रहन जिसमें अवैध खनन भी शामिल है के खिलाफ आवाज उठाना ।
संदेह के तार एक पुलिस अधिकारी तथा स्थानिय मंत्री से जुडे़ हैं । परिवार वालों का मानना है कि इससे पहले भी मृतक पत्रकार पर प्राण घातक हमला और उन्हें झूठे केस में फसाने की साजिश रची थी । राजधानी दिल्ली भी है पीछे । यहां भी पुलिसकर्मियों पर हमले आम बात हैं । और इन सबके चलते आम आदमी की क्या बिसात । फतेहपुर में आम तोडने पे विवाद अंजाम जिंदा दहन । हमारी शर्तें नहीं तो हर हर गंगे ।
गौर फरमाने की बात यह है कि सी.पी.जे. के सालाना इमप्युनिटी इंडेक्स के अनुसार भारत विश्व का तेरहवा एैसा देश है जहां पत्रकारों की खुले आम हत्या होती है और हत्यारे बेखौफ खुले आम घूमते हैं । पत्रकार संगठन एवं इंटरनेश्नल पत्रकार संघ केंद्र और स्थाननीय सरकारों पर निरंतर दबाव बनाये हैं । नेशनल युनियन आफ जर्नलिस्ट ने भी हाल ही में अपनी सहयोगी संस्थाओं के सहयोग से किया जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन और दिया है केंद्र सरकार को ज्ञापन ।
सियासत और खुलासो के खेल का आखिर क्या होगा अंजाम यह तो आनेवाला समय ही तय करेगा । फिलहाल आवश्यक्ता है कानून के दायरे में रहकर विचारों की स्वतंत्रता के साथ माकूल सुरक्षा इंतजामात की....