बढ़ चला है सिलसिला नाबालिगों की अपराध में भागीदारी का । छोटे ही नहीं अब जघन्य अपराधों को दिया जा रहा है अंजाम नाबालिगों की सहायता से । अपराधों को अंजाम देने वाले नाबालिगों की उमर 15 से 17 साल के दरमयान है । उमर भले ही छोटी हो परिपक्व मानसिक्ता के साथ सोंची - समझी साजिश के तहत अपराधों को अंजाम देकर सरे आम कानून की आंखों में धूल झोंकी जा रही है । क्या फरक पड़ता है गेंगवार हो या मर्डर या फिर रेप ।
हाल ही में हुई विकास पुरी में डेंटिस की हत्या में भी दो नाबालिगों की भागीदारी । डेंटिस्ट साहिब का दोष बस इतना बेटे के साथ सेहन में क्रिकेट खेल रहे थे अंजाने मे बाल किसी को लग गई । बस क्या डाक्टर साहिब को घर से बाहर खदेड़के लाया गया और इतनी बुरी तरीके से सरिये - रोड से पीटा गया । पत्नी और एक आद रिश्तेदार की बीच-बचाव की कोशिश नाकाम रही । दिन का समय और लोगों की आवाजाही ।
कुछ अरसे पहले पेशी के लिये लाये गये अपने एक साथी को छुड़ाने के लिये कड़कड़ डूमा कोर्ट परिसर में एक गेंग ने फायरिंग की गई जिसमें हेड कांस्टेबल राम कंवर मीना की मौत हुई और फायरिंग करने वाले नाबालिक थे । दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड में भी बरबरता की हद पार करने वाला नाबालिग ही था ।
अपराध कितना भी जघन्य क्यो न हो सजा हद से हद तीन साल बाल सुधार गृह में । अच्च्छे चाल-चलन का प्रमाण पत्र मिलते ही रिहाई । और शुरु हो जाता है नये अपराध को अंजाम देने का सिलसिला । आखिर कब तक चलता रहेगा यह आंख मिचोली का सिलसिला आवश्यक्ता है कानून मे संशोधन की और लीक प्रूफ दंड व्यवस्था की । विचारनीय है अल्प संख्यकों/दलितों के नाम पर राजनीति का तंदूर सेकने वालों के लिए तीनों ही बहुचर्चित मामलों मे नाबालिग अल्पसंख्यक समुदाय से थे । जुर्म को मजहब का जामा पहनाना कहां तक सही ...