पंजाब से त्रस्त होने के बाद अब केजरीवाल की निगाहें हैं दिल्ली मे संभावित नगर निगम चुनावों पे । तीन जोनों में विभक्त नगर निगम के 272 वार्डों मे मतदान होना है । वैसे तो यहाँ भी आम आदमी पार्टी और बी.जे.पी. में काँटे की टक्कर है । जनता दल युनाइटेड वा स्वराज इंडिया के मैदान में उतरने से रोचक परिणामों की संभावना से इंकार नही सकता । समय के कांग्रेस के रियुनाइट होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता ।
कांग्रेस और भा.ज.पा. की खामियों के साथ अपनी उपलब्धियाँ गिनाते हुये आम आदमी पार्टी सुप्रिमो अरविंद केजरिवाल का ऐन चुनाव से पहले मतदाताओं को रिझाने के लिये फ्री पैकेज हाउस टेक्स का सफाया । वैसे दिल्ली सरकार की तीन साल की उपब्धियों का खुलासा समय-समय पर सरकार द्वारा विज्ञापन के माध्यम से होता ही रहता है । यह बात और है विभिन्न विभागों का बजट काम से कहीं ज्यादा विज्ञापन पे है ।
इसमें दो राय नहीं कि नगर निगम की तीनों ही जोन अव्यवस्था कि शिकार हैं । फंड की अनियमितताओं के चलते कर्मचारियों की वेतन की माँग को लेकर हड़ताल मीडिया की सुर्खियों में अक्सर नजर आती है । आय दिन की हड़ताल से दिल्ली की सड़कों और गली कूचों में लगते कचरे के धेर से अब हैजा फैले या पानी के जमाव से डेंगू हमारे नेताओं को ताल ठोकने से फुरसत ही कहाँ ।
इस साल के दिल्ली सरकार के बजट में 21.8 प्रतिशत की बढ़त है । जबकि नगर निगम के बजट में 13.3 प्रतिशत की बढत है । याने की 2016.17 का दिल्ली सरकार का बजट है 46600 करोड़ है जिसमें 6919 करोड़ का प्रोविजन है । दावेदारी की जंगमें कहीं न कहीं दिल्ली नगर निगम शिकार है कुप्राशन की ।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है तो केंद्र में बी.जे.पी. की । अधिकारों को लेकर आय दिन के टकराव के चलते नगर निगम तो नगर निगम दिल्ली सरकार का भी काम-काज ठप और ठीकरा फूटता है दिल्ली वासियों पर । कभी सी.एम. बनाम एल.जी. तो कभी सी.एम. बनाम पी.एम.।
परिवर्तन के साथ जरुरी है नगर निगम में संरचनात्मक एवं ढाँचागत बदलाव । क्या फरक पड़ता है दिल्ली नगर निगम की बागडोर आम आदमी पार्टी के पास हो या भारतीय जनता पार्टी के । विज्ञापन की सुर्खियों मे बने रहने से जरुरी है सुरचनात्मक कार्य शैली ......