कच्चे तेल याने कि क्रूड आयल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में गिरावट के बावजूद पेट्रोल और डीजल के भावों में अप्रत्याशित बढ़त कहीं न कहीं प्रभावित करती है खाद्य सामाग्री की कीमत वा बुनियाादी सेवाओं के लिये दिये जाने वाले शुल्क को । कमर तोड़ मंहगाई के चलते जहाँ आम आदमी सर पकड़ कर सोचने को मजबूर हो जाता है वहीं विपक्ष को मौका मिल जाता है मौजूदा सरकार को घेरने का । साथ ही शुरू इो जाता है रैलियों का दौर ।
मंत्री रह चुके कपिल सिब्बल जो कि पेशे से वकील भी हैं द्वारा कांग्रेस पार्टी मुख्यालय में किये गये खुलासे के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में 50 प्रतिशत गिरावट आने के बावजूद पेट्रोल और डीजल के भावों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है ।
अपनी सरकार की उपलब्धियाँ और मौजूदा सरकार की खामिया गिनवाते हुए उनका कहना इै कि इस दौरान कंज्युमर प्राइस इंडेक्स में 17.92 % की बढ़त जिसमें खाद्य सामाग्री और सेवायें शामिल हैं ।शिक्षा पर खर्चे में बढ़त 23.93 % उसी प्रकार इलाज के खरचे में 24.38 % वृद्धि आम आदमी की कमर तोड़ने के लिये काफी हैं। सब्जियों के इामों में यह बढ़त औसतन 56.48% है । और इन सबके बीच काम-धंधे में गिरावट ।
इसमें दो राय नहीं कि आम आदमी कमर तोड़ मंहगाई से जूझ रहा है विचारणीय है तो बस अंतरराष्ट्रीय बजार में कच्चे तेल की कीमत गिरने के बावजूद बढ़ती पेट्रोल और डीजल की कीमत । कर प्रणाली के साथ प्रोसेसिंग और ट्रांसपोर्टेशन में होने वाले खर्चों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता.......