मायानगरी मुंबई में ना जाने कितनी जिन्दगियां फुटपाथ पर जन्म लेती हैं और कितनी फुटपाथ पर ही दफन भी हो जाती हैं। ख्वाबों का तानाबाना बुनते हुए लाखों लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई आते हैं। लेकिन, हकीकत ले आती है फुटपाथ पर और बना देती है फुटपाथ का एक हिस्सा। शुरू हो जाता है फुटपाथों पर कब्जा। फैलती है गंदगी...बीमारी... आए दिन रास्ता जाम... आए दिन की चिल्लपों बन जाती है आम आदमी के लिए सिरदर्द। छोटे-मोटे कामों से की गई शुरूआत पेट की आग और हवस के कारण ले लेती है नशाखोरी और जिस्मफरोशी का रूप। शुरू होता है अपराधों का सिलसिला और आम आदमी कर लेता है तौबा।
नेताओं एवं माफिया के बीच फंसी पुलिस हो जाती है बेहाल। कहीं-कहीं चरमरा जाती है प्रशासनिक व्यवस्था। कहीं किसी कोने से आती है एक आवाज, ये भी इसी समाज का एक हिस्सा हैं, इन्हें भी सांस लेने दो और निकल पड़ता है कारवां...
जी हां, यह हाल मुंबई के किसी एक इलाके का नहीं, हर जगह का है। चाहे वो मुंबई सेंट्रल हो या ग्रांट रोड... कोलाबा हो या बांद्रा, सभी का एक ही आलम है। कहीं फुटपाथ पर लगी दुकानें तो कहीं है आशियाना...
आवश्यकता है सुधारवादी नजरिये और सही रूपरेखा की।