सीमा पार से सक्रिय आतंकी गतिविधियों के साथ आंतरिक आतंकवादी गतिविधियाँ आज सियासतदानों वा हुकुमरानों के लिये चुनौती हैं । छत्तिसगढ में नकसलाइट मूवमेंट तो असम में बोर्डो । दक्षिण भी नहीं है अछूता यहाँ भी मौका देख लिब्रेशन आफ तमिल टाइगर अपना हाथ साफ कर ही लेता है ।
कशमीर में सेना के जवानों वा सुरक्षाकर्मियों पर अलगावादियों पत्थरबाजों द्वारा की जाने वाली पत्थरबाजी वा देश के खिलाफ नारेबाजी मीडिया की सुर्खियों में रहती हैं । पिछले एक दशक में इस प्रकार की घटनाओं में बढत हुई है ।
हाल ही में कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में पार्टी के प्रवक्ता मनु अभिशेक सांघवी ने छत्तिसगढ का हवाला देते हुए बताया कि छत्तिसगढ में 2015-16 में101 आतंकी घटनायें घटी और मरने वालों की संख्या 106 थी जो कि 2017 में बढ़कर 130 हो गई ।
उनका मानना है कि जम्मू-कशमीर में डिमोनिटाइजेशन के बाद 70 मुख्य आतंकी घटनायें घटी जिन्में 170 सुरक्षाकर्मी और 70 सिविलियन की मौत हुई । सत्ता पक्ष की खामिया गिनाते हुए तीखी आलोचना के साथ यू.पी.ए. सरकार की उपलब्धियों को गिनवाया । उनका मानना है कि उनके शासनकाल में आंतंकी गतिविधियों से निपटने के लिये 88 नकसली जिलों के लिये इंटिग्रेटेड एकशन प्लेन बना और 2013-14 में गृह मंत्रालय के माध्यम से 13 हजार के बजट का प्रावधान था । 2014 के बाद यह योजना खारिज कर दी गई ।
जहाँ तक आतंकी घटनाओं का सवाल है सरकार किसी की भी रही हो एन.डी.ए. की या फिर यू.पी.ए. की जम्मू कशमीर और छत्तिसगढ में हालात बदस्तूर रहे हैं । तब भी जम्मू-कशमीर मीडिया की सुखियों में था आज भी मीडिया की सुखियों में है । विचारणीय है तो बस आतंकीे मामलों को निपटने के लिये प्रशासन की भूमिका । कहीं ना कहीं जरूरी हैं सांझा प्रयास...............