आगामी लोक-सभा चुनाव आने वाले समय में किसी चुनौती से कम नहीं । मौजूदा राजनीतिक समीकरण के चलते नहीं होगा आसान भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में गठित एनडीए अलायंस के लिये सियासत में अपना वजूद बरकरार रखना । कांग्रेस वा उसके सहयोगियों द्वारा छेड़ी गई एंटी भा.ज.पा. मुहिम और महागथबंधन का असर आगामी चुनावों में पडने से भी इंकार नहीं किया जा सकता ।
इसमें दो राय नहीं कि प्रधान-मंत्री नरेंद्र भाई मोदी के नेतृत्व में गठित केंद्र सरकार की नीतियों से भारत का दर्जा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा है । लेकिन कहीं ना कहीं जीएसटी और नोट-बंदी को लेकर देश के बयवसायिक तबके में अंदरूनी तौर पर नाराजगी है । इसमें दो राय शुरूवाती दौर में मंदी आई थी लोगों को करेंसी के लिये घंटों लंबी कतार में लगने के बाद भी खाली हाथ लौटना पड़ा था लेकिन समय के साथ परिस्थितियाँ दुरस्त हो गई ।
सुप्रिम कोर्ट का रफेल पर लिये गये फैसले साफ हुई छवि ने लिया राम-मंदिर का रूप । देश में सेक्युलर वा एंटी सेक्युलर के दौर को देखकर कहीं ना कहीं महसूस होता है कि विपक्ष की पकड़ कमजोर हुई है धीली नहीं । 1982 में दंगों में दोषी पाये जाने पर कांग्रेस के कभी लोकप्रिय रहे नेता सज्जन कुमार को अदालत द्वारा दिये गये आजीवन कारावास के फैसले ने विपक्ष मे हड़कंप मचा दिया ।
मामलों का खुलासा परत दर परत जारी है । सी.बी.आई. के डायरेक्टर अलोक वर्मा बनाम आस्थाना का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ था कि विपक्ष द्वारा जारी की गई भ.ज.पा. राष्ट्रीय अध्यक्ष आमित भाई शाह वा वित्त मंत्री अरूण जेटली की बिमारी पर विवादस्पद बयानबाजी फिलाहल मीडिया की सुर्खियों में बनी हुई है । फिलहाल वार और पलटवार का सिलसिला जारी है ।
त्रिपल तलाक विधेयक के संसद के पटल में लाये जाने से फिरकापरस्ती के लिये इस्लाम की मुखालफत करने वाले उलेमाओं की हई फजीहत और कहीं ना कहीं मुस्लिम महिलाओं के बीच कहीं ना कहीं बनी मौजूदा सरकार की पेथ । रही बात किसानों के कर्जे माफी की तो सरकार जिसकी बने वायदा खोखला ही साबित होंगा ।
राजनीतिक हलचल के मध्य-नजर कहीं ना कहीं भारी पड़ सकती है मिशन मोदी से हटकर जिम्मेदार हुकमरानों की सार्वजनिक तौर पर दी जा रही बयान-बाजी । कहीं पर राम के नाम पर तो कहीं हनुमान जी की वंशावली का पिटारा । प्रेस-वार्ता में महिलाओं से संबंधित अपराधों की व्याख्या करते हुए पीठासीन मुख्यमंत्री की विवादस्पद बयानबाजी ।
सत्ता के इस महायुद्ध में कहीं ना कहीं जरूरी है राजनीति के चाणक्य के लिये अभेदय व्युहरचना । युद्ध के बाद सत्ता के महाभोज मजा ही कुछ और होता है । फिर वह भोज ही क्या जो यूँ ही निपट जाये .....