केंद्रीय सूचना आयोग में 11 स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल दो आयुक्त कार्यरत है और यह आश्चर्यजनक है कि सितम्बर 2025 के बाद मुख्य आयुक्त का पद भी रिक्त है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को नियुक्तियों की समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया था। लेकिन सरकार इस संबध में कोई संवेदनशीलता नही दिखा रही है। उन्होंने कहा कि पदों की कमी के आरटीआई में लंबित मामले बढ़ रहे है और जानकारी उपलब्ध नही की जा रही हे। जून 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थीं, जो 2019 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। यही नही नवंबर 2024 तक केवल केंद्रीय सूचना आयोग में ही लगभग 23,000 लंबित मामले हैं।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन अनिल भारद्वाज ने निशान साधते हुए कहा कि डा.मनमोहन सिंह के नेतृत्व और यूपीए चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी के दूरदर्शी मार्गदर्शन में 12 अक्टूबर 2005 को बने ऐतिहासिक सूचना के अधिकार (आरटीआई) को भाजपा की मौजूदा सरकार भी पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की तरह लगातार कमजोर करने का काम कर रही है।परंतु 2014 के बाद मौजूदा भाजपा की मोदी सरकार आरटीआई एक्ट को लगातार कमज़ोर कर रही है, जिससे हमारे देश की प्रशासनिक पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे पर आघात पहुॅच रहा है। यही नही आरटीआई कानून पर संशोधन करके इसके प्रभाव को कम किया जा रहे है। भाजपा ने 2019 में कई संशोधन करके इस कानून की स्वतंत्रता को कमज़ोर किया जिससे सरकार के दखल बढ़ने के कारण कार्यपालिका के काम पर भी प्रभाव बढ़ा। उन्होंने कहा कि आरटीआई में 2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया और आयुक्तों का कार्यकाल जो 5 वर्ष का तय था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं। संशोधन करने बाद केंद्र सरकार ने आयुक्त के कार्यकाल और सेवा शर्तें तय करने का अधिकार अपने पास रख लिया।
2023 डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम और धारा के तहत डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम ने आरटीआई की धारा में संशोधन किया, जिसके द्वारा यह तय किया कि “कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं किया जाऐगा।