एक बार फिर हुई माया नगरी गणपति मय । सड़क एवं गली-कूचों से विसर्जन के लिये गुजरती गणपति बप्पा की छोटी-बड़ी प्रतिमायें एवं उनके आगे डीजे एवं ढोल नगाड़ों की तर्ज पर थिरकती भक्तों की टोली । हर टोली की अपनी अलग पहचान अपना अलग ड्रेस कोड । कोई खेतवाड़ी से तो कोई कमाटीपुरा से और कोई ताड़देव से । पुख्ता इंतजामत एवं पूर्ण चौकसी के साथ हो रहा है मुंबई के घाटों में बप्पा का विसर्जन । इस बार का आकर्षण थी विघ्नहर्ता संस्कृति मंडल ,बालगोपाल सार्वजनिक गणेश उत्सव की बप्पा की प्रतिमायें ।
हर बार की तरह इस बार भी जेट सिक्योरिटी के साथ विसर्जन के लिए निकला लाल बाग का राजा । गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है लाल बाग का राजा इसे हिंदू एवं मुस्लिम दोनों ही तबकों में एक सा सम्मान मिलता है । जब यह भायखला, नागपाड़ा एवं सीपी टैंक के रास्ते से गुजरता है तो इसका स्वागत मुस्लिम तबके द्वारा हर पहनाकर किया जाता है । मुंबई में सबसे बड़ी विसर्जन यात्रा लाल बाग के राजा की होती है । यह दक्षिण मुंबई के कि लगभग सभी इलाकों से होकर गुजरता है ।
फिरंगी शासन के खिलाफ लोगों को एकत्रित करने एवं राष्ट्रवादी सोंच को बढ़ावा देने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में सार्वजनिक रूप से गणपति पूजा की शुरुवात की थी । जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन को जान आंदोलन में तब्दील करने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में उभर कर आया। बाल गंगाधर तिलक द्वारा पुणे के केसरीवाड़ा में की गई यह शुरुवात महाराष्ट्र से चलकर पूरे देश में फैल गई है । मुंबई की तर्ज पर देश की राजधानी दिल्ली भी नहीं है अछूती । यहाँ पर भी अब गणपति पूजा का आयोजन सार्वजनिक रूप से होने लगा है ।
आइये हम भी बन जायें इस जश्न का हिस्सा और बोलें गणपति बप्पा मोरिया पुढ़ुल बरस तू लोकर या...