दलित राजनीति फिर से गरमाई । अपनी माँगों को लेकर दलित सड़क पर उतरे । 3 अप्रेल को दलित समुदाय के विभिन्न संगठनों ने किया भारत बंद का ऐलान । अपनी माँगों को लेकर दलितों ने लिया हिंसक रूप । भारत बंद के नाम पर हाथों में सरिये लाठी और उमड़ पड़ा दलित समुदाय । चक्क- जाम,आगजनी,टोड़-फोड़ और अंत में लाठी चार्ज ।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार आंदोलन के नाम पर हुई हिसा के दौरान 10 मौतें हई ।मध्य-प्रदेश मे 6,यू.पी. में 2 और राजस्थान के अलवर जिले में 1 । अन्य राज्यों से भी रेल मार्ग अवरोध तोड़-फोड़ और आगजनी के मामले प्रकाश में आये हैं । पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकताए बिहार, हरियाणा पंजाब और उड़ीसा में रेल और सड़क मार्ग हुए अविरूद्ध । कोई कोना जो मीडिया की सुर्खियों में न रहा हो ।
इस बार दलित आंदोलन का मुददा रोहित वेमुला नहीं अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में किये गये संशोधन को वापिस लेकर एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाये ।दलितों का मानना है कि इस 2007 से 2017 में दलितों के प्रति अपराधिक मामले 66 प्रतिशत बढ़े हैं । दलितों से संबंधित 90 प्रतिश मामले विभिन अदालतों में लंबित हैं । न्याय प्रक्रिया लचीली हुई है ।
अब एससी/एसटी एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के लिये एसपी की अनुमति लेनी पड़ेगी । एसपी को कारण बताना होगा । मजिस्ट्रेट इन मामलों की जाँच करेगा । झूढा मामला दर्ज कराने की स्थिति में आई.पी.सी. की धारा 182 और 211 के तहत दंड का प्रावधान है । यह दलित समाज को मान्य नहीं है ।
अपनी माँगों को लेकर दलितों के अग्रणी संगढन भीम आर्मी आगामी 18 अप्रेल को राष्ट्र व्यापी जन आंदोलन छेड़ने का आवाहन किया है । मामले की संवेदनशीलता के मध्य-नजर केंद्र सरकार की कार्यवाही जारी है । दलित समुदाय का रूख नर्म करने के लिये सुप्रिम कोर्ट में अपील भी डाली गई है ।
इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामले संवेदनशील हैं । बेबुनियाद वा आपसी वैमनस्य की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सक्ता । न्याय प्रणाली में दोनों के ही लिये उचित प्रावधान होने अनिवार्य हैं ।
मौजूदा घटनाक्रम के मध्यनजर दलित समाज राजनीतिक हल्कों में भले ही बहुबली घटक के रूप में उभर कर आया हो, विचारणीय है तो बस समझौते की राजनीति । कभी जाट तो कभी अल्पसंख्यक और अब दलित । कहीं न कहीं जरूरी है नजरिये में फेरबदल....