दिल्ली:निर्देशक आदित्य धर की महत्वाकांक्षी फिल्म धुरंधर न सिर्फ़ अपनी भारी-भरकम अवधि (3 घंटे 32 मिनट) बल्कि अपने विशाल कैनवास और राजनीतिक-पृष्ठभूमि वाले एक्शन–ड्रामा के कारण भी सुर्खियों में है।
रणवीर सिंह इस फिल्म में उस ऊर्जावान फॉर्म में दिखाई देते हैं, जिसकी दर्शक लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे थे। उनका चरित्र—जंगली, अनियंत्रित, खतरनाक और फिर भी संवेदनशील—फिल्म का धड़कता दिल है।
कहानी: इतिहास की आग में पका एक सिनेमाई थ्रिलर
फिल्म की कहानी 30 दिसंबर 1999 से शुरू होती है—वही समय जब भारत सरकार तीन ख़तरनाक आतंकियों की रिहाई पर अंतिम मुहर लगा चुकी थी, ताकि कंधार अपहरण के बंधकों को छुड़ाया जा सके। इसी माहौल में इंटेलिजेंस ब्यूरो अधिकारी अजय सान्याल (आर. माधवन) ‘प्रोजेक्ट धुरंधर’ की शुरुआत करते हैं, जिसकी छाया पूरे कथानक पर छाई रहती है।
यहीं से सामने आता है फिल्म का सबसे दिलचस्प किरदार—हमज़ा अली मज़ारी, जो असल में जसकीरत सिंह रंगीली है (रणवीर सिंह)। उसे पाकिस्तान के कराची में बसे ल्यारी गैंगस्टर सर्किट में घुसपैठ कर भारत-विरोधी गठजोड़ को भीतर से ध्वस्त करना है।
फिल्म में विस्तार से दिखाया गया है कि कैसे पाकिस्तान की राजनीति, गैंगस्टर वर्ल्ड और ISI का गठजोड़ मिलकर कराची को एक भयावह सत्ता-केन्द्र में बदल देता है। यह हिस्सा फिल्म को एक ठंडा, हिंसक और यथार्थवादी धार देता है।
अभिनय: रणवीर दमदार, अक्षय खन्ना करिश्माई
रणवीर सिंह पूरी फिल्म को अपने कंधों पर उठाए दिखाई देते हैं—हर फ्रेम में ऊर्जा और तीखापन साफ नज़र आता है।
• अक्षय खन्ना एक राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले गैंगस्टर के रूप में लाजवाब हैं।
• संजय दत्त, पाकिस्तानी सुपरकॉप से प्रेरित किरदार में, बेहद असरदार और खतरनाक दिखाई देते हैं।
• अर्जुन रामपाल, मेजर इकबाल के रोल में, सीमित स्क्रीन टाइम के बावजूद गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
• सारा अर्जुन यलीना के किरदार में ताज़गी लाती हैं।
• राकेश बेदी और गौरव गेरा अपने-अपने किरदारों में चौंकाते हैं।
हिंसा और मनोविज्ञान की टकराहट
कुछ दृश्य इतने कठोर और क्रूर हैं कि कमज़ोर दिल वाले दर्शक असहज हो सकते हैं। खासकर मेजर इकबाल का टॉर्चर सीक्वेंस फिल्म के सबसे डार्क और यादगार पलों में से एक है।
संगीत, तकनीक और ट्रीटमेंट
शाश्वत सचदेव का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म को नई ऊंचाई देता है। पुराने पाकिस्तानी पॉप और ग़ज़ल—हवा हवा, चुपके चुपके, आफ़रीन आफ़रीन—को जिस चतुराई से कहानी में पिरोया गया है, वह फिल्म को सांस्कृतिक वास्तविकता से जोड़ता है।
एक्शन दृश्य भव्य हैं और कैमरा वर्क कराची के अंदरूनी हिस्सों को बेहद वास्तविक रूप में पेश करता है।
कमज़ोरियाँ
फिल्म का दूसरा भाग अपनी रूपरेखा से थोड़ा भटकता है और कई जगह ऐसा लगता है जैसे यह एक अलग फिल्म की ओर मुड़ गई है। साथ ही दूसरी किस्त—जो 19 मार्च 2026 को आएगी—के कई दृश्य पहले ही ट्रेलर में दिखाए जाने से रोमांच कुछ कम होता है।
निष्कर्ष: एक विशाल, हिंसक और रोमांचकारी सिनेमाई अनुभव
धुरंधर राजनीति, जासूसी, गैंगस्टरों की दुनिया और राष्ट्रीय सुरक्षा के टकराव को लेकर बनी एक बारीक और बड़े पैमाने की फिल्म है। यह न तो सिर्फ एक्शन पर निर्भर है और न ही सिर्फ भावनाओं पर—बल्कि दोनों के बीच एक तेज धार पर चलती है।
फिल्म अंत में कई सवाल छोड़ जाती है—
क्या दूसरा भाग कहानी को और अधिक ताकत देगा?
क्या रणवीर सिंह अगले अध्याय में भी इसी तीव्रता को बनाए रख पाएंगे?
इन सवालों के जवाब दर्शकों को अगले साल मिलेंगे।
कुल मिलाकर—धुरंधर एक दमदार, एंगेजिंग और थिएटर-फ्रेंडली फिल्म है, जिसे मिस नहीं करना चाहिए।